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वो भी बहुत अकेला है शायद मेरी तरह,
उस को भी कोई चाहने वाला नहीं मिला।
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हजार रंग भरे जिंदगी के खाके में,
तेरे बगैर ये तस्वीर नामुकम्मल रही।
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सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई,
दुनिया की वही रौनक दिल की वही तन्हाई।
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चले भी आओ कि मैराज़-ए-इश्क हो जाए,
आज की रात अकेला हूँ मैं खुदा की तरह।
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वक़्त तो दो ही कठिन गुजरे है सारी उम्र में,
इक तेरे आने के पहले इक तेरे जाने के बाद।
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तेरे जल्वों ने मुझे घेर लिया है ऐ दोस्त,
अब तो तन्हाई के लम्हे भी हसीं लगते हैं।
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बस इतना होश है मुझे रोज-ए-विदा-ए-दोस्त,
वीराना था नजर में जहाँ तक नजर गयी।
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जिंदगी की राहों पर कभी यूँ भी होता है,
जब इंसान खुद को पढ़ता है अकेले में।
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हुआ है तुझसे बिछड़ने के बाद ये मालूम,
कि तू नहीं था तेरे साथ एक दुनिया थी।
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मेरी तन्हाई मार डालेगी दे दे कर तानें मुझको,
एक बार आ जाओ इसे तुम खामोश कर दो।
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